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सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ से जुड़ी सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से अहम सवाल किया – क्या हिंदू बोर्ड में मुसलमानों को शामिल होने की इजाजत दी जाएगी?

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वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई:

वक्फ अमेंडमेंट एक्ट को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से नए कानून के कई प्रावधानों, खासकर 'वक्फ बाय यूजर' से जुड़ी संपत्तियों को लेकर गंभीर सवाल किए। कोर्ट ने यह भी पूछा कि यदि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल किया जा सकता है, तो क्या सरकार हिंदू बंदोबस्ती बोर्डों में मुसलमानों को भी शामिल होने की अनुमति देगी।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई में जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने सुनवाई शुरू करते हुए कहा कि पहले यह तय किया जाए कि क्या ये याचिकाएं हाईकोर्ट भेजी जाएंगी और याचिकाकर्ता किन मुद्दों पर बहस करना चाहते हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि नया कानून संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक संस्थानों को अपने मामलों का प्रबंधन स्वतंत्र रूप से करने का अधिकार देता है। उन्होंने कलेक्टर को न्यायिक शक्तियां देने के प्रावधान पर भी सवाल उठाया, यह कहते हुए कि प्रशासनिक अधिकारी को न्यायिक भूमिका देना संविधान के खिलाफ है।

सिब्बल ने 'वक्फ बाय यूजर' की बात करते हुए कहा कि लंबे समय से धार्मिक या चैरिटेबल कार्यों में प्रयुक्त संपत्तियों को वक्फ माना जाता है, भले ही उनके पास कोई दस्तावेज न हो। उन्होंने कहा कि इस्लाम में यह परंपरा पुरानी और मान्य है, लेकिन नए कानून में विवादित या सरकारी ज़मीनों को इससे बाहर रखा गया है।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि देश में लगभग 8 लाख संपत्तियों में से 4 लाख संपत्तियां 'वक्फ बाय यूजर' के अंतर्गत आती हैं। इस पर CJI ने टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्हें बताया गया है कि दिल्ली हाईकोर्ट भी वक्फ भूमि पर बना है। उन्होंने कहा कि सभी 'वक्फ बाय यूजर' गलत नहीं हैं, लेकिन चिंता वास्तविक है।

केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह कानून संसद में गहन चर्चा और संसदीय समिति की समीक्षा के बाद पारित हुआ है।

CJI ने केंद्र से यह भी पूछा कि यदि 'वक्फ बाय यूजर' पहले किसी अदालती फैसले से मान्य हुआ था, तो क्या अब नया कानून उसे अमान्य कर देगा? उन्होंने कहा कि कई पुरानी मस्जिदें 13वीं से 15वीं सदी में बनी थीं, जिनके दस्तावेज होना मुश्किल है।

कोर्ट ने चेताया कि अगर सरकार उपयोग के आधार पर संपत्तियों को वक्फ घोषित करती है तो यह एक गंभीर मुद्दा बन सकता है, क्योंकि कुछ संपत्तियों के दुरुपयोग के उदाहरण जरूर हैं, लेकिन कई असली वक्फ भी हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने अंत में कहा कि "यदि 'वक्फ बाय यूजर' को हटाया गया, तो इससे कई ऐतिहासिक संपत्तियों की वैधता पर सवाल खड़े हो जाएंगे और यह एक बड़ी समस्या बन सकती है।"

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